मंगल और केतु ग्रह का सिंह राशि में प्रवेश

June 6, 2025 Author:

वैदिक ज्योतिष शास्त्र के अनुसार, 7 जून 2025 को मंगल देव और केतु देव सिंह राशि में प्रवेश करेंगे। जो तीव्र और प्रबल ऊर्जा का प्रतीक है। यदि यह योग शुभ स्थिति में हो तो यह निर्भयता, दृढ़ निश्चय और सकारात्मक परिणाम लाता है। लेकिन यदि अशुभ प्रभाव हो, तो क्रोध, दुर्घटनाएं और मन की चंचलता बढ़ सकती है।

इस युति का प्रभाव जानने के लिए आपकी कुंडली का सही विश्लेषण ज़रूरी है। बेहतर होगा कि आप किसी अनुभवी ज्योतिषाचार्य से सलाह लें। लेकिन एक सामान्य जानकारी के लिए आप नीचे आप पढ़ सकते हैं कि इस युति से हर राशि के लग्न (First House) पर कैसा असर पड़ेगा।

मेष लग्न (पंचम भाव – रचनात्मकता, संतान और प्रेम का क्षेत्र)

जब पंचम भाव में मंगल देव और केतु देव साथ आते हैं, तो दिल और दिमाग दोनों में हलचल बढ़ सकती है। आपकी क्रिएटिव सोच तेज़ हो जाती है, बच्चों से जुड़ी बातें या पुराने प्यार से जुड़ी यादें सामने आ सकती हैं। प्यार में छोटी-छोटी बातों पर तकरार हो सकती है, और पढ़ाई में मन भटक सकता है। अगर आप किसी इन्वेस्टमेंट का सोच रहे हैं, तो थोड़ा रुक जाना बेहतर रहेगा।  

बिना सोच-विचार किए कोई फैसला न लें। इस दौरान अंदर की तरफ देखने का मौका भी मिल सकता है, आध्यात्मिक रुझान बढ़ सकता है, मेडिटेशन या अकेले में समय बिताने का मन करेगा। सबसे जरूरी बात थोड़ा धैर्य रखें और चीज़ों को लेकर समझदारी बनाए रखें, तभी आप इस समय का पूरा फायदा उठा पाएंगे।

मेष लग्न में प्रथम भाव और अष्टम भाव के स्वामी

मंगल देव प्रथम भाव (शारीरिक संरचना और स्वास्थ्य) और अष्टम भाव (रहस्य, परिवर्तन व पुनर्जन्म का क्षेत्र) के स्वामी हैं। मेष लग्न वाले जातकों के लिए मंगल देव ही उनके जीवन के मुख्य स्वामी होते हैं। ये देवता आत्मविश्वास, साहस और नेतृत्व की ताकत देते हैं।

लेकिन मंगल देव साथ ही गुप्त परिवर्तन और पुनर्जन्म जैसे रहस्यमय क्षेत्रों के भी स्वामी हैं। इसलिए ऐसे जातक ज़िंदगी में बहादुरी से आगे बढ़ते हैं, लेकिन कई बार उन्हें अचानक बदलाव और अंदर से जागरूक होने का अनुभव भी होता रहता है।

मेष लग्न- स्वामी मंगल देव

मंगल देव का प्रभाव: यहां मंगल देव अपने ही लग्न में हैं, इसलिए वे आत्म-प्रेरणा, साहस और नेतृत्व की ऊर्जा जगाते हैं। व्यक्ति अपने जीवन का रास्ता खुद चुनता है और मुश्किलों का सामना करने का हौसला रखता है।

शुभ संकेत:

  • आपके फैसले तेज और सही होते हैं।
  • आप नेतृत्व करना पसंद करते हैं और लोग आपकी बात मानते हैं।
  • अपने क्रोध और भावनाओं पर काबू रखने की ताकत होती है।
  • मुश्किल हालात में भी डर नहीं लगता और आप हिम्मत नहीं हारते।
  • आपके काम में तेजी और आत्मविश्वास बना रहता है।

चुनौतीपूर्ण संकेत:

  • गुस्सा जल्दी आ सकता है, जिससे परेशानी हो सकती है।
  • कभी-कभी आप जल्दबाजी में गलत निर्णय ले सकते हैं।
  • रिश्तों में तनातनी या दबदबा बनने की समस्या हो सकती है।
  • अपनी जीत या कामयाबी दिखाने की इच्छा बहुत बढ़ सकती है।
  • कभी-कभी आप खुद को दूसरों से बेहतर साबित करने में बहुत मेहनत कर बैठते हैं, जो नुकसान भी पहुंचा सकता है।

वृषभ लग्न (चतुर्थ भाव – घर और भावनात्मक सुख का क्षेत्र)

चतुर्थ भाव में यह युति घर के जीवन और भावनात्मक ठहराव की परीक्षा दे सकती है। माँ से जुड़े मामले या संपत्ति को लेकर ज्यादा सावधानी और नाजुक सोच की जरूरत होगी। घर के माहौल से जुड़ा कोई भी फैसला जल्दीबाजी में लेने से पहले अपने मन को शांत और ठहराव वाला करना जरूरी होगा।

वृषभ लग्न में सप्तम भाव और बारहवें भाव के स्वामी

मंगल देव वृषभ लग्न के लिए बारहवें भाव (खर्च, अकेलापन, विदेश) और सप्तम भाव (शादी, सार्वजनिक जीवन) के स्वामी होते हैं। ये दोनों भाव हमारे अंदर और बाहर के रिश्तों से जुड़े हैं। मंगल देव की यह युति बताती है कि रिश्तों में जो झगड़े होंगे, वे आपको खुद को समझने और आध्यात्मिक रूप से आगे बढ़ने का मौका देंगे। खर्च और त्याग के फैसले भी आपके जीवन साथी या पार्टनर के प्रभाव में हो सकते हैं।

वृषभ लग्न– स्वामी शुक्र देव

यहां मंगल देव और शुक्र देव आपस में विरोध में हैं, जिससे अंदर ही अंदर एक संघर्ष बनता है। यह संघर्ष आपकी इच्छाओं और कामों के बीच संतुलन बनाने का होता है।

शुभ संकेत:

  • जब ऊर्जा सही दिशा में लगे, तो व्यक्ति सौंदर्य और रचनात्मक कामों में साहस दिखाता है।
  • जीवन के सुख पाने की तीव्र इच्छा काम में बदल जाती है।
  • जातक को कला और मेहनत का अच्छा मेल मिलता है।

चुनौतीपूर्ण संकेत:

  • वासना और गुस्से से जीवन में अस्थिरता आ सकती है।
  • संबंधों में ज्यादा अधिकार जताने या जल्दबाजी की प्रवृत्ति हो सकती है।
  • विलासिता में डूबने से आत्म-विकास रुक सकता है।

मिथुन लग्न (तृतीय भाव – संवाद, यात्रा और भाई-बहनों का क्षेत्र)

मंगल देव और केतु देव तृतीय भाव में ताकत और जोश भर रहे हैं, जिससे बात-चीत में थोड़ी असुविधा हो सकती है या भाई-बहनों से दूरी हो सकती है। छोटी यात्राएं भी अचानक रुक सकती हैं। इस ताकत को रचनात्मक लिखाई, साधना या खुद को व्यक्त करने में लगाना अच्छा रहेगा।

मिथुन लग्न में षष्ठ भाव और ग्यारहवें भाव के स्वामी

मंगल देव षष्ठ भाव (संघर्ष, बीमारी, दुश्मन) और ग्यारहवें भाव (लाभ, महत्वाकांक्षा) के मालिक होते हैं। मिथुन लग्न वाले लोगों के लिए मंगल देव काम में टक्कर और मेहनत से जीतने की ताकत देते हैं। ये बताते हैं कि मुश्किलें आपकी ताकत बनेंगी और दुश्मनी भी आखिर में आपके फायदे का कारण बन सकती है।

मिथुन लग्न– स्वामी बुध देव

मंगल देव का प्रभाव: मंगल देव यहां आपके मन की सक्रियता को काम में लगाने की प्रेरणा देते हैं। ये आपको सिर्फ सोचने ही नहीं, बल्कि अपने विचारों को काम में बदलने और सही फैसले लेने का हिम्मत भी देते हैं।

शुभ संकेत:

  • विचारों को जल्दी और सही तरीके से पूरा करने की ताकत बढ़ती है।
  • बहस या बातचीत में आत्म-विश्वास नजर आता है।
  • योजनाएं जल्दी से कामयाब हो सकती हैं।

चुनौतीपूर्ण संकेत:

  • गुस्से में कही गई बात से रिश्तों को नुकसान हो सकता है।
  • जल्दबाजी में लिए निर्णय बाद में पछतावा दे सकते हैं।
  • खुद को दूसरों से बेहतर समझने की वजह से सलाह लेने में संकोच हो सकता है।

कर्क लग्न (द्वितीय भाव – धन, वाणी और पारिवारिक मूल्यों का क्षेत्र)

मंगल देव और केतु देव द्वितीय भाव में धन, बात और परिवार से जुड़े होते हैं। यह युति आपके पैसे और परिवार के झगड़ों में तेज़ी ला सकती है। खर्चों पर काबू रखना और बोलचाल में नरमी रखना इस वक्त आपकी बड़ी सीख हो सकती है। परिवार के मसलों में धैर्य और संतुलन बनाए रखना जरूरी होगा।

कर्क लग्न में पंचम भाव और दशम भाव के स्वामी

मंगल देव पंचम भाव (दिमाग, बच्चे, प्रेम) और दशम भाव (कर्म, समाज में नाम) के मालिक होते हैं। यह खास जोड़ी है, जहां मंगल देव आपकी समझ को काम का मुख्य हिस्सा बना देते हैं। आपकी रचनात्मकता, प्यार और समझ जिंदगी के काम में काम आती है। मंगल देव यहां आपको प्यार और काम में पूरी लगन से जुड़ने की प्रेरणा देते हैं।

कर्क लग्न– स्वामी चंद्रदेव

मंगल देव का प्रभाव: चंद्रदेव की शीतलता और मंगल देव की अग्नि के बीच युद्ध उत्पन्न होता है। मंगलदेव यहां भावनात्मक दृढ़ता और आत्म-संरक्षण की सीख देते हैं।

शुभ संकेत:

  • संकट के वक्त भावनाएं स्थिर रहती हैं।
  • अपने और दूसरों की रक्षा के लिए हिम्मत से फैसले ले पाते हैं।
  • दया और काम करने की शक्ति में अच्छा संतुलन बना रहता है।

चुनौतीपूर्ण संकेत:

  • अंदर की बेचैनी से गुस्सा या चुप्पी बढ़ सकती है।
  • भावनाओं की तीव्रता से रिश्ते जटिल हो सकते हैं।
  • भीतर के द्वंद्व से मानसिक तनाव हो सकता है।

सिंह लग्न (प्रथम भाव – आत्म-छवि, स्वास्थ्य और दृष्टिकोण का क्षेत्र)

आपके ही लग्न में मंगल देव और केतु देव की यह जोड़ी बन रही है, जिससे खुद के बारे में सोचने, पहचान में बदलाव और मन में बेचैनी जैसी बातें हो सकती हैं। सेहत का ख्याल रखें और रिश्तों में संयम बनाए रखें। यह समय अपने अंदर की यात्रा और खुद की देखभाल का है।

सिंह लग्न में चतुर्थ भाव और नवम भाव के स्वामी

मंगल देव चतुर्थ भाव (आत्मिक शांति, माता, गृह) और नवम भाव (भाग्य, धर्म, गुरु) के स्वामी हैं। सिंह लग्न वाले जातकों के लिए मंगल देव अंदर की शांति और बाहर के मार्गदर्शन दोनों को ताकत देते हैं। यह योग बताता है कि भाग्य और धर्म की असली ताकत तब ही जागती है जब आप अपने अंदर से शांति महसूस करें।

सिंह लग्न– स्वामी सूर्यदेव

मंगल देव का प्रभाव: सूर्यदेव और मंगल देव की प्राकृतिक मित्रता से यहाँ साहस और नेतृत्व का मेल होता है। व्यक्ति अपने आत्मसम्मान की रक्षा के लिए हर जोखिम उठाने को तैयार रहता है।

शुभ संकेत:

  • आपमें ताकत और सही फैसला लेने की क्षमता अच्छी होती है।
  • आप में नेतृत्व करने की योग्यता होती है और कुछ नया करने की ऊर्जा रहती है।
  • आप अपने मेहनत से समाज में अच्छी जगह बना सकते हैं और सम्मान पाते हैं।

चुनौतीपूर्ण संकेत:

  • अगर अहंकार बढ़ जाए तो यह आपके लिए नुकसानदायक हो सकता है।
  • दूसरों की बात न मानने से आपके रिश्तों में परेशानी आ सकती है।
  • गुस्सा और दूसरों पर हावी होने की आदत से आपके सामाजिक संबंध कमजोर पड़ सकते हैं।

कन्या लग्न (द्वादश भाव – खर्च, एकांत और आध्यात्मिकता का क्षेत्र)

यह गोचर खर्च और आध्यात्मिकता को जाग्रत कर सकता है। नींद कम हो सकती है या अकेले रहने की इच्छा बढ़ सकती है। यह समय आध्यात्मिक साधना और वैराग्य के अभ्यास के लिए उपयुक्त रहेगा। फिर भी, छिपे हुए विरोध या भ्रम से सावधान रहना जरूरी होगा।

कन्या लग्न में तृतीय भाव और अष्टम भाव के स्वामी

मंगल देव तृतीय भाव (साहस, संवाद, छोटे भाई) और अष्टम भाव (परिवर्तन, गोपनीयता) के स्वामी हैं। यहाँ मंगल देव संवाद में मेहनत और प्रयासों में बदलाव की प्रेरणा देते हैं। ये जातक यदि अपने साहस और इरादों को सही दिशा में लगाएं तो अंदरूनी बदलाव और आत्मबोध के रास्ते खुल सकते हैं।

कन्या लग्न – स्वामी बुध देव

मंगल देव का प्रभाव: मंगल देव यहां निर्णय को क्रिया में बदलने की सीख देते हैं। कार्य के प्रति पूर्ण समर्पण और अनुशासन की प्रेरणा देते हैं।

शुभ संकेत:

  • आप जल्दी योजना बनाते हैं और उसे सफलतापूर्वक पूरा करते हैं।
  • अपने काम में निपुणता और समझदारी का अच्छा मेल होता है।
  • मेहनत और हिम्मत दोनों साथ-साथ चलती हैं।

चुनौतीपूर्ण संकेत:

  • कभी-कभी मानसिक दबाव और नकारात्मक सोच बढ़ सकती है।
  • आलोचना करने की आदत से झगड़े या विवाद हो सकते हैं।
  • काम को लेकर जल्दीबाजी या असंतोष महसूस हो सकता है।

तुला लग्न (एकादश भाव – मित्रता, सामाजिक लाभ और आकांक्षाओं का क्षेत्र)

मंगल देव और केतु देव की युति सामाजिक जीवन में बदलाव और लाभ के नए रूप समझने की प्रेरणा दे रही है। दोस्ती में दूरी या लाभ में उतार-चढ़ाव हो सकता है। अपनी इच्छाओं को सही तरीके से समझना इस समय का मुख्य संदेश हो सकता है।

तुला लग्न में द्वितीय भाव और सप्तम भाव के स्वामी

मंगल देव द्वितीय भाव (धन, वाणी, परिवार) और सप्तम भाव (विवाह, साझेदारी) के स्वामी हैं। तुला लग्न के जातकों के लिए मंगल देव रिश्तों और संसाधनों की रक्षा करते हैं। अगर उनकी बातों और संबंधों में ऊर्जा और स्पष्टता रहे, तो जीवन में स्थिरता और संतुलन बना रहता है।

तुला लग्न – स्वामी शुक्र देव

मंगल देव का प्रभाव: यहां शुक्र देव के सौंदर्य और मंगल देव की तीव्रता के बीच संतुलन बनाना जरूरी होता है। इस स्थिति में मंगल देव रिश्तों में साफ़-साफ़ बात करने की प्रेरणा देते हैं और कामों में मज़बूती और निश्चय लाते हैं।

शुभ संकेत:

  • रचनात्मक कामों में आपको पूरा विश्वास होता है।
  • रिश्तों को मजबूत बनाने के लिए आप साहस और मेहनत से काम लेते हैं।
  • आपकी कला और ऊर्जा में अच्छा मेल होता है।

चुनौतीपूर्ण संकेत:

  • गुस्सा और अपने अधिकार जताने की वजह से रिश्तों में तनाव बढ़ सकता है।
  • जल्दीबाजी में काम अधूरा रह सकता है।
  • सहयोग की जगह प्रतिस्पर्धा की भावना बढ़ सकती है।

वृश्चिक लग्न (दशम भाव – कर्म, प्रतिष्ठा और सार्वजनिक जीवन का क्षेत्र)

दशम भाव में मंगल देव और केतु देव की यह युति आपके कामकाज के क्षेत्र में अचानक बदलाव या वरिष्ठों के साथ मतभेद ला सकती है। ऐसे समय में आपकी समाज में बनी हुई छवि पर असर पड़ सकता है, इसलिए किसी भी पेशेवर फैसले में सोच-समझकर और परिपक्वता के साथ कदम उठाना जरूरी होगा।

वृश्चिक लग्न में प्रथम भाव और षष्ठ भाव के स्वामी

मंगल देव वृश्चिक लग्न वालों के लिए प्रथम भाव (शारीरिक संरचना और स्वास्थ्य) और षष्ठ भाव (रोग, ऋण, शत्रु) के स्वामी होते हैं। चूंकि मंगल देव स्वयं इस लग्न के अधिपति हैं, इसलिए यह एक बहुत ही शक्तिशाली स्थिति मानी जाती है। अगर ये जातक अपने अंदर के आत्मबल को सही दिशा में लगाएं, तो सबसे कठिन हालात में भी मजबूती से खड़े रह सकते हैं। इनके जीवन में आने वाला हर संघर्ष आत्म-शुद्धि और आंतरिक मजबूती का जरिया बन सकता है।

वृश्चिक लग्न– स्वामी मंगल देव

मंगल देव का प्रभाव: अपनी ही राशि में होने से मंगल देव यहां आत्मिक परिवर्तन और आंतरिक शक्ति का जागरण करते हैं। व्यक्ति अदृश्य संघर्षों से जूझने की क्षमता रखता है।

शुभ संकेत:

  • गहरे और कठिन विषयों में साहस के साथ उतरने की ताकत मिलती है।
  • आत्मनियंत्रण और छुपे हुए ज्ञान में रुचि बढ़ती है।
  • मुश्किल हालात में भी मानसिक मजबूती बनी रहती है।

चुनौतीपूर्ण संकेत:

  • अंदर का मन असंतुलित हो सकता है और ज़्यादा गोपनीयता से रिश्तों में दूरी बन सकती है।
  • गुस्सा भीतर ही भीतर बढ़ता रहता है।
  • अपने आप पर कठोर होने या फैसलों में ज़्यादा सख्ती होने की संभावना हो सकती है।

धनु लग्न (नवम भाव – उच्च शिक्षा, भाग्य और आस्था का क्षेत्र)

मंगल देव और केतु देव का नवम भाव (भाग्य, उच्च शिक्षा, गुरु, जीवन-दर्शन) में गोचर आपके विश्वास और जीवन के बड़े उद्देश्य से जुड़ी बातों को झकझोर सकता है। इस दौरान आपकी शिक्षा, यात्राओं या गुरुजन के साथ संबंधों में कुछ उलझनें या मतभेद हो सकते हैं। यह समय आपके सिद्धांतों और मान्यताओं की गहराई से परख कराएगा। अगर आप खुले मन से अनुभवों को अपनाएं, तो यह एक गहरा आत्मिक विकास और सीखने का चरण बन सकता है।

धनु लग्न में पंचम भाव और बारहवें भाव के स्वामी

मंगल देव पंचम भाव (बुद्धि, संतान, प्रेरणा) और द्वादश भाव (वैराग्य, आत्मबलिदान, मोक्ष) के स्वामी हैं। धनु लग्न वाले जातकों के लिए मंगल देव जीवन में ऊँचे विचारों, रचनात्मक सोच और आंतरिक शांति की ओर प्रेरणा देने वाले देवता बनते हैं। इनका प्रेम, संतान और ज्ञान से जुड़ा अनुभव केवल बाहरी नहीं होता, बल्कि भीतर झांकने और आत्मचिंतन करने का माध्यम बन जाता है। यह योग बताता है कि आपके विचार और रचनात्मकता मोक्ष की राह के संकेतक हो सकते हैं।

धनु लग्न – स्वामी बृहस्पति देव

मंगल देव का प्रभाव: बृहस्पति देव और मंगल देव की युति जीवन को ऊर्जावान और धर्म-प्रधान बनाती है। यहां मंगलदेव आंतरिक विश्वास को क्रिया में बदलने की प्रेरणा देते हैं।

शुभ संकेत:

  • उच्च शिक्षा, यात्रा और मार्गदर्शन में उत्साह बढ़ता है।
  • आध्यात्मिक कामों में रुचि और लगाव बढ़ता है।
  • आत्मविश्वास और कर्म शक्ति दोनों मजबूत रहते हैं।

चुनौतीपूर्ण संकेत:

  • ज्यादा उत्साह में धर्म या ज्ञान का गलत इस्तेमाल हो सकता है।
  • सलाह देने में ज़्यादा कठोर या दबाव डालने वाला रवैया हो सकता है।
  • अतिवाद या कट्टर सोच विवाद पैदा कर सकती है।

मकर लग्न (अष्टम भाव – परिवर्तन, गूढ़ता और साझे संसाधनों का क्षेत्र)

मंगल देव और केतु देव का अष्टम भाव में यह गोचर आपके भीतर की गहराइयों को छू सकता है। यह समय मानसिक या आध्यात्मिक रूप से गहरे परिवर्तन की प्रेरणा दे सकता है। स्वास्थ्य को लेकर सावधानी जरूरी है, और किसी भी काम में जल्दबाजी से बचना चाहिए। यह समय भीतर झांकने, खुद को समझने और जीवन के रहस्यों को महसूस करने का हो सकता है।

मकर लग्न में चतुर्थ भाव और ग्यारहवें भाव के स्वामी

मंगल देव चतुर्थ भाव (घर, माँ, मन की शांति) और ग्यारहवें भाव (लाभ, महत्वाकांक्षा) के स्वामी हैं। मंगल देव यहाँ घर की शांति और जीवन की उपलब्धियों के बीच एक पुल का काम करते हैं। ऐसे जातकों के लिए ज़रूरी है कि वे घर के माहौल और समाज में अपनी पहचान—दोनों के बीच संतुलन बनाए रखें। तभी असली संतुष्टि और सफलता संभव है।

मकर लग्न – स्वामी शनि देव

मंगल देव का प्रभाव: शनि देव के साथ मंगल देव की युति एक कठोर कर्म क्षेत्र की ओर संकेत करती है। व्यक्ति जीवन में मेहनत, संघर्ष और उद्देश्य की स्पष्टता के साथ आगे बढ़ता है।

शुभ संकेत:

  • ठोस और निर्णायक काम करने की शैली होती है।
  • जीवन में स्थिरता और लंबी अवधि की सफलता मिलती है।
  • मुश्किल हालात से लड़ने की अच्छी क्षमता होती है।

चुनौतीपूर्ण संकेत:

  • कठोर व्यवहार और भावुकता रिश्तों में दूरियां ला सकती है।
  • ज्यादा दबाव और निराशा से मानसिक थकान हो सकती है।
  • जीवन में खुशी और आराम की कमी महसूस हो सकती है।

कुंभ लग्न (सप्तम भाव – संबंध, विवाह और साझेदारियों का क्षेत्र)

सप्तम भाव में मंगल देव और केतु देव की युति वैवाहिक या साझेदारी संबंधों में असंतुलन ला सकती है। इस दौरान किसी भी गलतफहमी को खुले और शांत संवाद से सुलझाना ज़रूरी होगा। व्यापारिक साझेदारियों में भी लचीलापन और स्पष्टता बनाए रखना फायदेमंद रहेगा।

कुंभ लग्न में तृतीय भाव और दशम भाव के स्वामी

मंगल देव तृतीय भाव (साहस, संचार, भाई) और दशम भाव (कर्म, लक्ष्य, प्रसिद्धि) के स्वामी हैं। कुंभ लग्न वालों के लिए मंगल देव परिश्रम और नेतृत्व में तेज़ी और स्पष्टता लाते हैं। इनकी बातों और कार्यों में निर्णय की तीव्रता और दिशा की स्पष्टता मंगल देव की विशेष प्रेरणा से ही आती है।

कुंभ लग्न – स्वामी शनि देव

मंगल देव का प्रभाव: यहां मंगल देव विचारों को जमीन पर उतारने, सामाजिक सुधार की दिशा में साहसिक कार्य करने की प्रेरणा देते हैं।

शुभ संकेत:

  • समाज सुधार या वैज्ञानिक खोजों में तीव्र सक्रियता दिखाई देती है।
  • नवीन विचारों को लागू करने की हिम्मत और उत्साह मिलता है।
  • स्वतंत्र विचार और साहसी अभिव्यक्ति का समन्वय होता है।

चुनौतीपूर्ण संकेत:

  • अत्यधिक तर्कशीलता से रिश्तों में ठंडापन आ सकता है।
  • विद्रोही स्वभाव असामंजस्य पैदा कर सकता है।
  • क्रियाशीलता में स्थायित्व की कमी हो सकती है।

मीन लग्न (षष्ठ भाव – स्वास्थ्य, सेवा और प्रतिस्पर्धा का क्षेत्र)

मंगल देव और केतु देव का षष्ठ भाव में यह गोचर कार्य क्षेत्र की चुनौतियाँ और स्वास्थ्य संबंधी समस्याएँ ला सकता है। फिर भी, सेवा, अनुशासन और आत्मसंयम के जरिए आप इन बाधाओं को पार करने का अवसर प्राप्त कर सकते हैं।

मीन लग्न में द्वितीय भाव और नवम भाव के स्वामी

मंगल देव और केतु देव का षष्ठ भाव में यह गोचर कार्य क्षेत्र की चुनौतियाँ और स्वास्थ्य संबंधी समस्याएँ ला सकता है। फिर भी, सेवा, अनुशासन और आत्मसंयम के जरिए आप इन बाधाओं को पार करने का अवसर प्राप्त कर सकते हैं।

मीन लग्न – स्वामी बृहस्पति देव

मंगल देव का प्रभाव: यहां मंगल देव आत्मबल को करुणा में बदलने की क्षमता देते हैं। व्यक्ति को आंतरिक प्रेरणा से सेवा, ध्यान और साधना के क्षेत्र में अग्रसर करते हैं।

शुभ संकेत:

  • आध्यात्मिक और रचनात्मक कार्यों में समर्पण बढ़ता है।
  • दूसरों के दुख को समझकर सेवा करने की प्रेरणा मिलती है।
  • भावुकता और क्रियाशीलता का अच्छा संतुलन बना रहता है।

चुनौतीपूर्ण संकेत:

  • भ्रम, पलायन और आत्म-संदेह की स्थिति बन सकती है।
  • साहसिक निर्णय लेने में असमंजस या डर बना रह सकता है।
  • कभी-कभी यथार्थ से दूर होकर कल्पनाओं में खो जाने की प्रवृत्ति होती है।

कैसी है मंगल और केतु की उर्जा?

वैदिक ज्योतिष शास्त्र के अनुसार मंगल देव ऊर्जा, आक्रामकता और कार्य के प्रतीक माने गए हैं, जबकि केतु देव विरक्ति, भक्ति और पिछले कर्मों के प्रतीक हैं। जब ये दोनों ग्रह एक साथ आते हैं, तो इनकी ऊर्जा में टकराव हो सकता है। मंगल देव जहां कार्य के लिए प्रेरित करते हैं, वहीं केतु देव उसी क्रिया के उद्देश्य पर प्रश्न उठा सकते हैं। जिससे आंतरिक संघर्ष उत्पन्न हो सकता है।

कुछ लोग अत्यधिक आवेग में आ सकते हैं और बिना सोचे कार्य कर सकते हैं। इनके कार्य अचानक लाभ या हानि का कारण बन सकते हैं जो जीवन के कई क्षेत्रों को प्रभावित कर सकते हैं। कुछ लोग खुद को भ्रमित महसूस कर सकते हैं और यह समझ नहीं पाते कि अपनी ऊर्जा कहां लगाएं। अचानक क्रोध, चिड़चिड़ापन और भ्रम की स्थिति भी हो सकती है। मन बेचैन हो सकता है, जिससे किसी एक लक्ष्य पर लंबे समय तक ध्यान केंद्रित करना कठिन हो जाता है।