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December 8, 2025 Author: Divya Gautam
वर्ष के अंतिम दिनों में आने वाली धनु संक्रांति हिन्दू धर्म में अत्यंत पावन तिथि मानी जाती है। इस वर्ष धनु संक्रांति 16 दिसंबर 2025 (मंगलवार) को पड़ रही है। हर वर्ष सूर्यदेव के वृश्चिक राशि से धनु राशि में प्रवेश करने को धनु संक्रांति कहा जाता है। इस घटना से एक नया आध्यात्मिक और मौसम‑परिवर्तन चक्र शुरू होता है।
इस दिन का महत्व धर्म, अध्यात्म और दान‑पुण्य के दृष्टिकोण से बहुत ऊँचा माना गया है। मान्यता है कि इस पावन संक्रांति पर किया गया स्नान, जप, ध्यान और दान साधक के जीवन में पुण्य की वृद्धि करता है और आने वाले समय को अधिक शुभ बनाता है। श्रद्धालु इस दिन पवित्र नदियों में स्नान कर सूर्यदेव को अर्घ्य अर्पित करते हैं और मनोकामना पूर्ति की प्रार्थना करते हैं।
धनु संक्रांति पर ब्रह्म मुहूर्त में जल स्नान का विशेष महत्व माना गया है। धार्मिक परंपराओं के अनुसार, इस समय स्नान करना शरीर‑मन दोनों की शुद्धि का प्रतीक है। विशेष रूप से नदियों या पवित्र जलाशयों में स्नान करने से न सिर्फ शारीरिक पवित्रता मिलती है, बल्कि मानसिक और आत्मिक अशुद्धियाँ भी दूर हो जाती हैं। स्नान के बाद, श्रद्धा और भक्ति से सूर्य देव को अर्घ्य अर्पित करने से जीवन में उजाला, सकारात्मक ऊर्जा और स्थिरता आती है। मंत्र-जप जैसे “ॐ सूर्याय नमः” से यह ऊर्जा और भी सशक्त होती है।
धनु संक्रांति का दिन दान‑दान के लिए विशेष शुभ माना गया है। भोजन‑दान, वस्त्र‑दान, तिल‑दान, गुड़ और कच्चे अनाज का दान जीवन में स्थिरता, शांति और समृद्धि लाने वाला माना गया है। तिल का दान विशेष रूप से पवित्र माना जाता है क्योंकि इसे शुद्धि और दिव्य ऊर्जा का प्रतीक कहा गया है। सर्दियों की शुरुआत में ऊनी वस्त्र या कंबल दान करना भी शुभ माना जाता है। दान‑पुण्य, सेवा और सौहार्द का यह कार्य न सिर्फ समाज को, बल्कि दाता के जीवन को भी सकारात्मक रूप से बदलने वाला होता है।
धनु संक्रांति सूर्य देव की पूजा का दिन है। सुबह स्नान के बाद, सूर्य को जल‑अर्घ्य, दीप और फूल अर्पित करना शुभ माना गया है। इसके साथ पूजा‑आराधना, मंत्र‑जप या ध्यान करने से आत्मा और मन दोनों में सकारात्मक बदलाव आते हैं जीवन में ऊर्जा, स्वास्थ्य और मानसिक संतुलन आता है। कई धार्मिक विद्वान मानते हैं कि इस दिन ग्रह और नक्षत्रों का संयोग साधना की शक्ति को दोगुना कर देता है। इसलिए सूर्य नमस्कार, मंत्र जाप और स्तुति‑पाठ करना अत्यंत फलदायी होता है।
धनु संक्रांति केवल निजी पूजा‑दान तक सीमित नहीं है। यह सामाजिक सामंजस्य और सांस्कृतिक जुड़ाव का अवसर भी है। कुछ क्षेत्रों में इस दिन पारंपरिक व्यंजन बनाये जाते हैं, जिन्हें परिवार और समुदाय के बीच बांटा जाता है। साथ ही परिवार, मित्र और पड़ोसी मिलकर पूजा‑दर्शन, भेंट‑दान और मिलन‑समारोह करते हैं, जिससे सामाजिक सद्भाव, भाईचारा और उत्सव भाव बढ़ता है।