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December 11, 2025 Author: Divya Gautam
हिन्दू धर्म में धनु संक्रांति और खरमास का समय अत्यंत आध्यात्मिक और धार्मिक माना जाता है। वर्ष 2025 में यह महत्वपूर्ण संयोग 16 दिसंबर से बन रहा है, जब सूर्य देव धनु राशि में प्रवेश करेंगे और इसी के साथ खरमास की शुरुआत होगी। यह अवधि लगभग एक महीने तक रहती है और इसे ऐसा समय कहा गया है जब तेज गति से चलने वाले जीवन को थोड़ा विराम देकर आत्मिक शांति, धार्मिकता और आत्मनिरीक्षण को प्राथमिकता देनी चाहिए। आइए समझते हैं इस अवधि का महत्व, क्यों नहीं किए जाते मांगलिक कार्य और कौन-से कर्म शुभ फलों का आशीर्वाद दिलाते हैं।
धनु संक्रांति के साथ सूर्य देव अग्नि तत्व की धनु राशि में प्रवेश करते हैं। इसे एक ऐसी अवधि माना जाता है जब व्यक्ति के जीवन में नई दिशा, स्पष्टता और सकारात्मक ऊर्जा आती है। सूर्य ऊर्जा, आत्म-बल, आत्मविश्वास और निर्णय क्षमता का प्रतीक है। धनु राशि में प्रवेश के बाद मन में स्थिरता, साहस और मानसिक मजबूती बढ़ती है।
यह परिवर्तन कई लोगों के लिए नई योजनाओं की शुरुआत या जीवन में रुके हुए कार्यों को आगे बढ़ाने का संकेत देता है। हालांकि, इसी दिन से खरमास शुरू हो जाने के कारण मांगलिक कार्यों में विराम की सलाह दी जाती है।
खरमास एक ऐसा काल है जब सूर्य देव धनु या मीन राशि में रहते हैं। इस समय सूर्य की चमक और ऊर्जा की स्थिति अन्य राशियों की तुलना में कमजोर मानी जाती है। सूर्य नवग्रहों के राजा हैं और किसी भी मांगलिक कार्य जैसे विवाह, गृह प्रवेश, मुंडन, नया व्यवसाय में सूर्य की ऊर्जा बेहद महत्वपूर्ण मानी जाती है। खरमास को आध्यात्मिक उन्नति, मन की शुद्धि और आत्मनिरीक्षण का महीना बताया गया है। इसे संसारिक कार्यों से विराम लेकर ईश्वर के ध्यान और धार्मिक कर्मों पर ध्यान केंद्रित करने का श्रेष्ठ समय कहा गया है।
इस काल में सूर्य देव का तेज और शक्ति अन्य समय की तुलना में कम हो जाती है। सूर्य आत्मा, ऊर्जा और जीवन शक्ति के कारक हैं। उनकी कमजोर स्थिति मांगलिक कार्यों के शुभ फल को कम कर सकती है।
खरमास का सीधा संबंध गुरु ग्रह से भी माना जाता है, जो धर्म, ज्ञान और विवाह जैसे मांगलिक कार्यों के प्रतिनिधि हैं। इस काल में गुरु देव के सकारात्मक गुण कमजोर प्रभाव देते हैं, जिससे किए गए मांगलिक कार्य स्थायी और फलदायी नहीं माने जाते।
इस दौरान सूर्य और बृहस्पति ग्रहों का संयुक्त प्रभाव मांगलिक कार्यों को कमजोर कर देता है। ज्योतिष के अनुसार, ऐसे समय में किए गए शुभ कार्य अधूरे, निष्फल या बाधाओं से घिरे हो सकते हैं।
खरमास का उद्देश्य मनुष्य को बाहरी जीवन से थोड़ा विराम देकर आत्मिक शक्ति, ध्यान और आध्यात्मिकता की ओर अग्रसर करना है। इसी कारण इस समय भौतिक और मांगलिक कार्य रोककर धार्मिकता को प्राथमिकता दी जाती है।
प्रतिदिन भगवान विष्णु, शिव या अन्य देवी-देवताओं की पूजा करने से मन में शांति, मानसिक संतुलन और सकारात्मक ऊर्जा बनी रहती है। परिवार में सामंजस्य और सुख-समृद्धि बढ़ती है।
गरीबों, जरूरतमंदों, गौशाला, धर्मशाला या असहाय लोगों को भोजन, वस्त्र, कंबल या अन्य आवश्यक सामग्री का दान अत्यंत शुभ माना जाता है। खरमास के दौरान किए गए दान का फल अक्षय माना गया है।
इस अवधि में किए गए धार्मिक यात्राएं मानसिक और आत्मिक उन्नति प्रदान करती हैं। कहा जाता है कि इस समय तीर्थ करने से कई जन्मों का पुण्य प्राप्त होता है और मन को गहरा संतोष मिलता है।
घर को साफ-सुथरा रखना, पूजा स्थान को शुद्ध करना और दीपक जलाकर सकारात्मक ऊर्जा फैलाना शुभ माना जाता है। इससे घर में सुख, समृद्धि और स्वास्थ्य में सुधार होता है।
यह काल आत्मनिरीक्षण का सही समय है। ध्यान करने से मानसिक स्पष्टता बढ़ती है और तनाव दूर होता है। यह व्यक्ति को अपने लक्ष्यों, निर्णयों और जीवन दिशा को समझने में मदद करता है।
गीता, रामायण, भागवत, शिव पुराण जैसे ग्रंथों का नियमित पाठ मन को स्थिरता देता है और आध्यात्मिक शक्ति बढ़ाता है।
खरमास में व्रत, जप, हवन और मंत्र साधना के अद्भुत फल बताए गए हैं। विशेष रूप से श्रीहरि के मंत्र इस समय अत्यंत फलदायी होते हैं।